Wednesday, December 17

डॉ. भीमराव आंबेडकर: दलितों और अल्पसंख्यकों के मसीहा, आंबेडकर नाम की कहानी

नई दिल्ली, 5 दिसंबर: देश के सामाजिक सुधारक, संविधान निर्माता और दलितों के मसीहा डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर का जीवन हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। उनके योगदान, उपलब्धियों और समाज में उनके अद्वितीय स्थान को याद करते हुए महापरिनिर्णय दिवस मनाया जाता है।

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बचपन और प्रारंभिक जीवन:
डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक महार परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम भीमराव सकपाल था। पिता का नाम रामजी राव, माता का नाम भीमाबाई और दादा का नाम मालोजी सकपाल था।

भीमराव का बचपन जातिवाद और सामाजिक भेदभाव की कठोर परिस्थितियों में बीता। उनके गांव और समाज में महार जाति को अछूत माना जाता था। बावजूद इसके, भीमराव ने पढ़ाई में अव्वल रहकर अपनी प्रतिभा साबित की।

सकपाल से आंबेडकर तक:
भीमराव ने प्रारंभिक शिक्षा सतारा की प्राथमिक पाठशाला से प्राप्त की और 1900 में गवर्नमेंट वर्नाक्यूलर हाईस्कूल सतारा में दाखिला लिया। वे अपनी पढ़ाई में इतने होशियार थे कि अपनी जाति में चौथी कक्षा पास करने वाले पहले व्यक्ति बने। मैट्रिक परीक्षा में पास होने वाले वे अकेले महार थे।

उनकी प्रतिभा और मेहनत देखकर उनके शिक्षक महादेव आंबेडकर ने उन्हें ‘आंबेडकर’ उपनाम दिया। इसका उद्देश्य भीमराव को स्कूल में भेदभाव से बचाना और सम्मानजनक पहचान देना था। बाद में उन्होंने औपचारिक रूप से इसे अपना लिया।

आंबेडकर नाम का अर्थ:
महाराष्ट्र में प्रचलित परंपरा के अनुसार लोग अपने पैतृक गांव के नाम को उपनाम के रूप में अपनाते थे। रत्नागिरी जिले के अंबावड़े गांव के लोग ‘अंबावडेकर’ या ‘आंबेडकर’ कहलाते थे। मराठी में ‘कर’ का अर्थ होता है ‘से’। इस तरह आंबेडकर का अर्थ है – “अंबावड़े गांव से आने वाला व्यक्ति।”

संदेश:
डॉ. भीमराव आंबेडकर का जीवन संघर्ष, शिक्षा और समानता की लड़ाई का प्रतीक है। उनका नाम और योगदान आज भी सामाजिक समानता और न्याय के प्रतीक के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।

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