
कभी पिछड़ेपन की पहचान समझे जाने वाले बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और असम आज भारत की आर्थिक रफ्तार के नए चालक बनकर उभरे हैं। एचएसबीसी की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी के बाद के वर्षों में ये राज्य न सिर्फ अमीर राज्यों की बराबरी की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं, बल्कि देश की कुल विकास दर में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इस बदलाव को ग्रोथ कन्वर्जेंस कहा जा रहा है—जहां पहले अधिक विकसित राज्य तेजी से बढ़ते थे, अब विकास की असली गति उभरते राज्यों से आ रही है।
कैसे बदल रही है तस्वीर?
रिपोर्ट बताती है कि FY13–FY19 के दौरान अमीर राज्यों की ग्रोथ रफ्तार सबसे ज्यादा थी। लेकिन महामारी के बाद पहली बार यह ट्रेंड उलट गया है। अब कम आय वाले राज्यों की विकास दर ऊंची है, और राज्यों के बीच अंतर तेजी से घट रहा है।
इस ग्रोथ का आधार है उच्च पब्लिक कैपिटल एक्सपेंडिचर—अर्थात सड़कों, पुलों, बिजली, पानी और अन्य बुनियादी ढांचे में भारी निवेश।
- असम, यूपी, राजस्थान और बिहार ने बड़े पैमाने पर कैपेक्स बढ़ाया
- स्थिर नीतियों और मजबूत राजस्व के कारण निजी निवेश भी बढ़ा
- महामारी के बाद केंद्र की ओर से मिले अतिरिक्त फंड ने राज्यों की वित्तीय स्थिति को मजबूती दी
बिहार नंबर 1 — ग्रोथ का नया पोस्टर बॉय
FY23 से FY25 के बीच बिहार ने 10.3% की रियल GSDP ग्रोथ दर्ज की—जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है और राष्ट्रीय औसत 7.8% से बहुत आगे।
इतना ही नहीं, FY25 में पहली बार बिहार की इंडस्ट्री सेक्टर का GVA हिस्सा (23.2%) कृषि (22.4%) से आगे निकल गया।
यह औद्योगिक परिवर्तन बिहार को एक नए आर्थिक चरण में ले जा रहा है।
उत्तर प्रदेश—हाई-टेक निर्यात में नई छलांग
UP ने FY17 से FY25 के बीच इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल, आईटी सेवाओं और हाई-टेक उत्पादों के निर्यात में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की है।
राज्य देश की उभरती मैन्युफैक्चरिंग शक्ति बनता दिख रहा है।
अर्थशास्त्र का सिद्धांत भी दे रहा समर्थन
रिपोर्ट सोलो-स्वैन ग्रोथ मॉडल का हवाला देती है। यह मॉडल कहता है:
- जिन देशों या राज्यों में पूंजी–श्रम अनुपात कम होता है, वहां विकास की गति ज्यादा होती है,
- क्योंकि हर नए निवेश का असर बहुत बड़ा होता है।
यही कारण है कि उभरते राज्य तेजी से बढ़ रहे हैं, जबकि अमीर राज्य अपनी विकास सीमा के करीब पहुँच चुके हैं।
कहां है खतरा?
तेजी से हो रही प्रगति के बावजूद कुछ गंभीर चुनौतियाँ भी हैं:
- केंद्र के टैक्स कलेक्शन में कमी
टैक्स दरों में कटौती और धीमी नॉमिनल GDP ग्रोथ से राज्यों को मिलने वाला हिस्सा घट सकता है। - कैश ट्रांसफर आधारित लोकलुभावन योजनाओं का बढ़ता बोझ
इससे चालू खर्च बढ़ रहा है और वित्तीय घाटा भी। - FY25 में राज्यों ने आमदनी घटने पर भी कैपेक्स नहीं रोका—बल्कि घाटा बढ़ाकर निवेश जारी रखा।
लेकिन घाटा अब सुरक्षित सीमा के करीब है।
यदि आमदनी और कमजोर हुई तो सबसे पहले कैपेक्स पर चोट लग सकती है—और इससे विकास की रफ्तार भी धीमी पड़ जाएगी।
निष्कर्ष
बिहार, यूपी, राजस्थान और असम आज भारत की अर्थव्यवस्था का नया इंजन बनकर उभर रहे हैं।
मजबूत कैपेक्स, स्थिर नीतियाँ और बढ़ता निजी निवेश इनकी सफलता की कुंजी है।
लेकिन यदि वित्तीय अनुशासन बिगड़ता है और लोकलुभावन खर्च बढ़ता है, तो उभरती यह रफ्तार झटके में धीमी भी पड़ सकती है।