
पटना: बिहार विधानसभा अध्यक्ष पद को लेकर राजनीतिक गलियारों में सियासी मंथन जारी है। बीजेपी और जनता दल (यूनाइटेड) दोनों दल आगामी चुनावों को देखते हुए महत्वपूर्ण जातीय समीकरण साधने की रणनीति में जुटे हैं।
बीजेपी में 9 बार विधायक रहे अति पिछड़ा नेता प्रेम कुमार का नाम चर्चा में है, वहीं उप मुख्यमंत्री रेणु देवी को भी संभावित दावेदार के रूप में रखा गया है, ताकि चुनावी गणित में आधी आबादी और अति पिछड़ा वर्ग दोनों को साथ रखा जा सके।
जनता दल (यू) की ओर से पहले अति पिछड़ा दामोदर रावत का नाम सामने आया था, अब जदयू के गलियारों में एक और नाम उभर रहा है—प्रोटेम स्पीकर नरेंद्र नारायण यादव। माना जा रहा है कि जदयू यादव कार्ड खेलकर अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है।
यादगार रहा सदानंद सिंह विवाद
वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव के बाद कुछ दिनों के लिए नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे। उस समय भाजपा ने 67 और समता पार्टी ने 34 सीटें जीती थीं। एनडीए को सरकार बनाने का मौका मिला और तब सदानंद सिंह प्रोटेम स्पीकर बने।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा रही कि बहुमत साबित करने के समय सदानंद सिंह की भूमिका विवादित रही। कहा गया कि उन्होंने कांग्रेस विधायकों को इधर-उधर किया, जिससे नीतीश कुमार बहुमत साबित नहीं कर सके। हालांकि बाद में सरकार बनी और सदानंद सिंह प्रोटेम स्पीकर से स्पीकर बन गए।
नरेंद्र नारायण यादव बने प्रोटेम स्पीकर
अब जनता दल (यू) के नरेंद्र नारायण यादव को बिहार विधानसभा का प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया है। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने पटना में उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। 1 दिसंबर को विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी।
नरेंद्र नारायण यादव आठ बार विधायक रहे हैं। 1995 में आलमनगर सीट से पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और तब से लगातार आठ बार इसी सीट से विजयी रहे। वे नीतीश सरकार में मंत्री और विधानसभा उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।
यादव वोट बैंक पर जदयू की नजर
जदयू वर्ष 2025 विधानसभा चुनाव के बाद उत्साहित है और आगामी राजनीति को देखते हुए यादव नेता नरेंद्र नारायण यादव को साथ लेकर अपने वोट बैंक में मजबूती लाना चाहती है। विशेषकर उत्तर बिहार में उनके बड़े कद और यादव समुदाय में प्रभाव को ध्यान में रखते हुए जदयू की रणनीति तैयार की जा रही है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि प्रोटेम स्पीकर बनने के बाद नरेंद्र नारायण यादव का राजनीतिक प्रभाव और दायरा बढ़ेगा, जिससे जदयू को आगामी चुनाव में यादव समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी।