Tuesday, December 16

अबूझमाड़ की नक्सली सम्मी की गोद में खिल उठा परिवार का सपना

नागपुर: अबूझमाड़ के जंगलों में कभी हथियारों से खेलती रही 25 वर्षीय सम्मी की जिंदगी ने 2025 में नया मोड़ लिया। माओवादियों की गुरिल्ला टीम मेंबर रही सम्मी अब अपनी गोद में नवजात बेटे को पाल रही हैं। गड़चिरौली के जिला महिला अस्पताल में बच्चे के जन्म के समय सम्मी की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।

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सम्मी की शादी नक्सली कमांडर अर्जुन से हुई थी। माओवादी संगठन में शादी की अनुमति तो थी, लेकिन बच्चे पैदा करना निषिद्ध था। सम्मी और अर्जुन भी कभी सोच नहीं सकते थे कि उनका अपना बच्चा होगा।

सरेंडर के बाद बदली जिंदगी
सरकार की पुनर्वास योजना के तहत 1 जनवरी 2025 को सम्मी और अर्जुन ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के सामने सरेंडर किया। गड़चिरौली पुलिस ने ‘प्रोजेक्ट संजीवनी’ के तहत उनका पुनर्वास सुनिश्चित किया। उनके लिए आधार, पैन, बैंक अकाउंट, ई-श्रम कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाए गए और उन्हें 16.3 लाख रुपये भी दिए गए।

सम्मी ने बताया कि नक्सली दल में परिवार बसाने का सपना देखना भी असंभव था। अब उनके पास वह सब कुछ है, जिसका कभी सपना भी नहीं देखा था।

नसबंदी की छूट से हुआ पिता बनना संभव
पुलिस के अनुसार, माओवादी संगठन में पुरुष सदस्यों को नसबंदी के लिए मजबूर किया जाता था। अर्जुन को इस प्रक्रिया से छूट मिली, जिसके चलते वह पिता बन सके। दस महीने पहले तक सम्मी बंदूक और दवाएं लेकर जंगलों में दौड़ती थीं, वहीं आज वह अपनी गोद में नई जिंदगी और नया सपना पाल रही हैं।

सरेंडर ने बदली नक्सलियों की राह
गड़चिरौली में अब तक 101 माओवादियों ने हथियार डाले हैं। सरकार की पुनर्वास योजना के बाद कुल 783 नक्सली मुख्यधारा में लौट चुके हैं। कई लोग अब दुकानदार या ऑटो चालक बन चुके हैं। अर्जुन ने बताया कि वह अपने बेटे को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं, ताकि उसका जीवन बंदूकों की आवाज़ से दूर रहे।

समाज और परिवार की ओर लौटते हुए सम्मी और अर्जुन की कहानी यह संदेश देती है कि शांति और इंसानी रिश्ते सबसे बड़ी जीत हैं

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