Wednesday, December 17

बिहार चुनाव 2025: क्या इस बार टूटेगा 25% वोट शेयर का रिकॉर्ड? 65% मतदान के बाद सियासी गणित में नई हलचल

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पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में जनता ने उत्साह का नया इतिहास रच दिया है। रिकॉर्ड 65 फीसदी मतदान के साथ राज्य ने अपने अब तक के सारे आंकड़े तोड़ दिए हैं। अब सभी की निगाहें 14 नवंबर पर टिकी हैं, जब नतीजे घोषित होंगे। लेकिन इस जोश के बीच एक पुराना सवाल फिर उभर रहा है — क्या इस बार कोई पार्टी 25 फीसदी वोट शेयर का आंकड़ा पार कर पाएगी?

🔹 बिहार की राजनीति में अब तक कोई दल नहीं पहुंचा 25 फीसदी वोट शेयर तक

बिहार की राजनीति गठबंधनों और जातीय समीकरणों पर टिकी रही है। यही कारण है कि अब तक कोई भी राजनीतिक दल राज्य में 25 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर हासिल नहीं कर सका है।
2020 के चुनाव में आरजेडी को 23.11% वोट मिले थे, जबकि बीजेपी को 19.46% और जदयू को 15.39% वोट हासिल हुए थे।
2015 में यही कहानी उलट थी — बीजेपी को 24.42% और आरजेडी को 18.35% वोट मिले थे।
दिलचस्प बात यह है कि बिहार में अक्सर सबसे ज्यादा वोट पाने वाला दल सत्ता से बाहर रह जाता है, जबकि गठबंधन सरकार बनाता है।
2015 में बीजेपी वोट शेयर में आगे थी, फिर भी आरजेडी-जदयू गठबंधन सत्ता में आया।
2020 में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन एनडीए ने सरकार बनाई।
यही बिहार की राजनीति का नियम है — यहां सबसे बड़ा नहीं, सबसे मजबूत गठबंधन जीतता है।

🔹 2025 में नए चेहरे और नए समीकरण

इस बार एनडीए में बीजेपी, जदयू, लोजपा (चिराग पासवान), हम और उपेंद्र कुशवाहा की रालोमो शामिल हैं।
वहीं महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल और वीआईपी एकजुट हैं।
बीजेपी और जदयू 101-101 सीटों पर बराबरी से चुनाव लड़ रही हैं, जबकि लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें दी गई हैं।
एनडीए ने एक बार फिर नीतीश कुमार को चेहरा बनाया है, जबकि महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव मैदान में हैं और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम पद का वादा किया गया है।

🔹 पिछली बार किसका रहा स्ट्राइक रेट मजबूत

2020 के चुनाव में बीजेपी का स्ट्राइक रेट सबसे बेहतर रहा — 110 में से 74 सीटें यानी 67% सफलता
आरजेडी ने 144 में से 75 सीटें (52%) जीतीं, जबकि कांग्रेस 70 में से सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई।
विश्लेषकों का मानना है कि 2020 में चिराग पासवान की बगावत ने जदयू को नुकसान पहुंचाया, जबकि कांग्रेस ने आरजेडी की स्थिति कमजोर की।

🔹 एनडीए के पक्ष में काम कर रहे 5 बड़े फैक्टर

1️⃣ महिलाओं के लिए ₹10,000 की योजना — 1.3 करोड़ महिला मतदाताओं पर सीधा असर।
2️⃣ वृद्धावस्था पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1,100।
3️⃣ 125 यूनिट मुफ्त बिजली योजना, नीतीश के खाते में बड़ी उपलब्धि।
4️⃣ नीतीश कुमार की स्थिर और भरोसेमंद छवि।
5️⃣ पीएम मोदी का “जंगल राज बनाम विकास” नैरेटिव, जिसने लालू शासन की याद ताजा कर दी।

🔹 महागठबंधन की उम्मीदें भी कम नहीं

1️⃣ तेजस्वी यादव का युवा कनेक्शन, खासकर पहली बार वोट देने वालों के बीच लोकप्रियता।
2️⃣ हर परिवार को नौकरी का वादा, जो बेरोजगारी से जूझते बिहार में बड़ा मुद्दा है।
3️⃣ महिलाओं को ₹30,000 वार्षिक नकद सहायता का वादा — एनडीए की महिला योजना का जवाब।
4️⃣ नीतीश सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर
5️⃣ स्पष्ट नेतृत्व — तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया जाना।

🔹 14 नवंबर को होगा फैसला

अब सबकी निगाहें 14 नवंबर पर हैं — जब नतीजों से तय होगा कि बिहार की जनता ने मोदी-नीतीश ब्रांड की योजनाओं पर भरोसा जताया है या तेजस्वी यादव के रोजगार और बदलाव के एजेंडे पर।
इतिहास गवाह है कि बिहार में गणित अक्सर राजनीति से भारी पड़ता है — लेकिन इस बार क्या कोई दल 25% वोट शेयर का जादुई आंकड़ा तोड़ पाएगा? यही चुनावी मौसम का सबसे बड़ा सवाल है।

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