Tuesday, December 16

महाराष्ट्र नगरीय निकाय चुनाव 2025: लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत करने का समय

This slideshow requires JavaScript.

लेखक: विनायक अशोक लुनिया

भारत का लोकतंत्र केवल संसद या विधानसभा तक सीमित नहीं है। इसकी असली ताकत और आत्मा उन संस्थाओं में बसती है जो जनता के सबसे नज़दीक हैं — ग्राम पंचायतें, नगर परिषदें और नगर पंचायतें**।
हाल ही में **महाराष्ट्र राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित नगर निकाय चुनावों की अधिसूचना इस लोकतांत्रिक यात्रा का एक और महत्वपूर्ण अध्याय है।

आने वाली 2 दिसंबर 2025 को राज्य के लगभग 300 नगरीय निकाय फिर से जनता की अदालत में जाएंगे — विश्वास का नया जनादेश पाने के लिए।

🔹 स्थानीय शासन — लोकतंत्र का असली चेहरा

स्थानीय निकाय चुनावों में लोकतंत्र अपनी सबसे नज़दीकी अभिव्यक्ति पाता है।
जहाँ सांसद और विधायक नीतियाँ बनाते हैं, वहीं नगरसेवक और पार्षद उन्हें धरातल पर अमल में लाते हैं**।
सड़क, नाली, पेयजल, स्वच्छता और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएँ इन्हीं के निर्णयों पर निर्भर करती हैं।

इसलिए, 2 दिसंबर को डाला गया हर वोट सिर्फ़ किसी उम्मीदवार का भविष्य तय नहीं करेगा, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए **स्थानीय विकास की दिशा भी निर्धारित करेगा।

🔹 चुनावी ढांचा

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार महाराष्ट्र में लंबित सभी स्थानीय निकाय चुनाव 31 जनवरी 2026 तक पूरे किए जाने हैं।

इस क्रम में 246 नगर परिषदों और 42 नगर पंचायतों में चुनाव की घोषणा की गई है, जिनमें 10 नई नगर परिषदें और 15 नई नगर पंचायतें शामिल हैं।

कुल मिलाकर यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया चुनेगी:

  • 86,859 सदस्य
  • 288 अध्यक्ष

लगभग 1 करोड़ 7 लाख मतदाता 13,355 मतदान केंद्रों पर मतदान करेंगे, और पूरी प्रक्रिया ईवीएम (EVM) के माध्यम से सम्पन्न होगी।

🔹 तकनीक और पारदर्शिता

इस बार निर्वाचन आयोग ने प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और सरल बनाने के लिए डिजिटल साधनों का उपयोग किया है।
ऑनलाइन नामांकन प्रणाली और मोबाइल ऐप की शुरुआत की गई है ताकि हर प्रत्याशी को समान अवसर मिल सके।

मुख्य प्रावधान:

  • प्रत्याशी अधिकतम चार नामांकन पत्र भर सकेंगे।
  • जाति प्रमाण पत्र (Caste Validity Certificate) अनिवार्य होगा।
  • प्रमाण पत्र लंबित होने की स्थिति में रसीद प्रस्तुत करनी होगी, और विजय के बाद 6 माह के भीतर वैध प्रमाण पत्र जमा करना अनिवार्य होगा।

इसके अलावा वार्डवार मतदाता सूची 7 नवंबर से ऑनलाइन उपलब्ध होगी, जिससे मतदाता आसानी से अपनी जानकारी सत्यापित कर सकेंगे।

तकनीक अब केवल सुविधा नहीं रही — यह निष्ठा और जवाबदेही की गारंटी बन चुकी है।

🔹 मतदान — लोकतंत्र का उत्सव

भारत में चुनाव सदैव लोकतंत्र के पर्व के रूप में मनाए जाते हैं।
इस बार निर्वाचन आयोग ने इसे और अधिक समावेशी बनाने के लिए विशेष कदम उठाए हैं —

  • दिव्यांग मतदाताओं, वरिष्ठ नागरिकों और गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष सुविधाएँ।
  • कुछ मतदान केंद्र होंगे “पिंक पोलिंग स्टेशन”, जिन्हें पूरी तरह महिलाओं द्वारा संचालित किया जाएगा — यह महिला सशक्तिकरण की मजबूत मिसाल है।
  • प्रत्येक केंद्र पर पानी, छाया, बिजली और स्वच्छता की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।

मतदान गोपनीयता बनाए रखने के लिए मोबाइल फोन मतदान कक्ष के भीतर प्रतिबंधित रहेंगे, हालांकि परिसर में ले जाने की अनुमति होगी।

🔹 जाति वैधता — निष्पक्ष प्रतिनिधित्व की दिशा में बड़ा कदम

जाति वैधता प्रमाण पत्र की अनिवार्यता साफ-सुथरे और पारदर्शी चुनावों की दिशा में बड़ा कदम है।
यह सामाजिक न्याय और प्रशासनिक स्पष्टता दोनों को सुनिश्चित करता है और चुनाव बाद उत्पन्न होने वाले विवादों को रोकता है।
इस प्रक्रिया के डिजिटलीकरण से निर्वाचन आयोग ने पूर्व-निवारण की दिशा में निर्णायक कदम उठाया है।

🔹 जमीनी शक्ति — लोकतंत्र की असली परीक्षा

नगर परिषदें और नगर पंचायतें लोकतंत्र की धड़कन हैं।
यहीं नागरिक अपने प्रतिनिधियों से सीधे जवाब मांग सकते हैं।
जब सड़क टूटी हो या पानी की टंकी सूख जाए — तो जवाबदेही स्थानीय प्रतिनिधि की होती है, न कि किसी दूर बैठे विधायक या सांसद की।

इस अर्थ में ये संस्थाएँ “लोकतंत्र की पहली सीढ़ी” हैं, जहाँ शासन और जनता आमने-सामने खड़े होते हैं।

🔹 स्थानीय निकाय — विकास के इंजन

भारत जब “विकसित भारत – विजन 2047” की ओर बढ़ रहा है, तो स्थानीय निकाय इस दृष्टि की रीढ़ की हड्डी हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, कचरा प्रबंधन और शहरी नियोजन — सबका सीधा कार्यान्वयन यहीं होता है।

यदि इन चुनावों से ईमानदार, सक्षम और सेवाभावी नेतृत्व उभरता है, तो महाराष्ट्र का विकास स्वतः गति पकड़ लेगा।

🔹 राजनीतिक समीकरण और जन अपेक्षाएँ

महाराष्ट्र के स्थानीय चुनाव हमेशा से राज्य की राजनीतिक दिशा का संकेतक रहे हैं।
हालाँकि ये चुनाव स्थानीय स्तर के हैं, लेकिन इनके परिणाम अक्सर बड़े राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करते हैं।

इस बार मैदान में हैं — शिवसेना (उद्धव गुट), शिवसेना (शिंदे गुट), एनसीपी (शरद पवार), एनसीपी (अजित पवार), कांग्रेस और भाजपा जैसी प्रमुख पार्टियाँ।

लेकिन जनता की अपेक्षाएँ अब बदली हैं —
“राजनीति नहीं, प्रदर्शन चाहिए।”
साफ सड़कें, स्वच्छ पानी, कुशल कचरा प्रबंधन और उत्तरदायी शासन — यही आज के मतदाता का एजेंडा है।

🔹 महिलाएँ और युवा — लोकतंत्र की नई ताकत

महिला-संचालित मतदान केंद्रों की शुरुआत यह स्पष्ट संकेत देती है कि महिलाएँ अब लोकतंत्र की दर्शक नहीं, निर्णायक शक्ति हैं।
साथ ही, निर्वाचन आयोग की सोशल मीडिया और मोबाइल जागरूकता मुहिमों ने युवाओं को भी मतदान प्रक्रिया से जोड़ा है।

यह दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र अब अपने सबसे युवा नागरिकों से ऊर्जा प्राप्त कर रहा है — केवल मतदाता के रूप में नहीं, बल्कि सक्रिय सहभागी के रूप में।

🔹 चुनौतियाँ और उम्मीदें

पैसे का प्रभाव, जातिगत समीकरण और मतदाता उदासीनता अब भी चुनौती हैं।
लेकिन लोकतंत्र तभी सशक्त होगा जब चुनाव सेवा का संकल्प बनेंगे, सत्ता का साधन नहीं।

राजनीतिक दलों को पहचान की राजनीति से ऊपर उठकर विकास की जवाबदेही को प्राथमिकता देनी होगी — यही 21वीं सदी के नेतृत्व की असली कसौटी है।

🔹 निष्कर्ष — ताकत नीचे से आती है

जब लाखों महाराष्ट्रीय मतदाता 2 दिसंबर को मतदान केंद्रों पर जाएंगे, वे केवल प्रतिनिधि नहीं चुनेंगे —
वे अपने शहरों, कस्बों और लोकतंत्र के भविष्य की दिशा तय करेंगे।

इन चुनावों की असली सफलता जीत के अंतर में नहीं, बल्कि जनभागीदारी, पारदर्शिता और नागरिक चेतना की गहराई में निहित होगी।

यदि हर मत जिम्मेदारी की भावना से डाला जाए और हर उम्मीदवार राजनीति से ऊपर सेवा को प्राथमिकता दे, तो यह चुनाव केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं रहेगा — बल्कि यह होगा लोकतंत्र की आत्मा का पुनर्जागरण।

“नगर परिषदें और नगर पंचायतें लोकतंत्र की जड़ें हैं — जितनी गहरी इन्हें सींचेंगे, उतना ही मजबूत लोकतंत्र का वृक्ष होगा।” 🌿

Leave a Reply