Wednesday, December 17

सीरिया के पतन की पूरी कहानी: दमिश्क में ‘सब खत्म’ कैसे हुआ?— एक प्रभावशाली समाचार लेख (प्रकाशन योग्य शैली में)

दमिश्क/नई दिल्ली।
सीरिया में बशर-अल-असद की सत्ता के पतन को पूरा एक वर्ष बीत चुका है, लेकिन आज भी मध्य-पूर्व की राजनीति में उस घटना की गूंज सुनाई देती है। राजधानी दमिश्क पर इस्लामिक विद्रोही समूहों का कब्ज़ा, ईरानी सेना की अचानक वापसी और असद का देश छोड़कर रूस भाग जाना—इन सभी घटनाओं ने मिलकर आधुनिक पश्चिम एशिया की तस्वीर पूरी तरह बदल दी।

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इस अवसर पर सोमवार को पूरे सीरिया में जश्न मनाया गया। दमिश्क में नए राष्ट्रपति और पूर्व अल-कायदा कमांडर अहमद अल-शरा ने भव्य सैन्य परेड की सलामी लेकर सत्ता परिवर्तन की पहली वर्षगांठ का औपचारिक उत्सव मनाया। पर सवाल यह है कि असद राज का ऐसा अंत कैसे हुआ?

ईरानी समर्थन से शुरू हुआ सफर, ईरानी वापसी से हुआ अंत

सीरियाई गृहयुद्ध की शुरुआत वर्ष 2011 में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों पर सरकारी दमन के बाद हुई। असद सरकार को बचाने के लिए ईरान ने भारी सैन्य और राजनीतिक समर्थन दिया। ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स, हिज़बुल्लाह और इराकी मिलिशिया असद की लड़ाई की रीढ़ थे।

लेकिन जब विद्रोही इस्लामी सेनाओं ने बिजली की गति से दमिश्क की ओर बढ़ना शुरू किया, तभी खेल बदल गया। असद की सेना बिखरने लगी और ईरानी अधिकारियों में घबराहट बढ़ती चली गई।

“हम जा रहे हैं… सब खत्म हो गया”—ईरानी अधिकारी की घोषणा

घटनाक्रम को समझने के लिए एक पूर्व सीरियाई अधिकारी की गवाही बेहद महत्वपूर्ण है। उसके अनुसार, 5 दिसंबर 2024 को माजेह स्थित एक ऑपरेशनल सेंटर में लगभग 20 सीरियाई सैन्य अधिकारियों की बैठक बुलाई गई।

बैठक में उपस्थित ईरानी शीर्ष कमांडर ने साफ शब्दों में कहा:
“आज से सीरिया में कोई ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड नहीं रहेगा। हम जा रहे हैं… सब खत्म हो गया। अब हम आपके लिए जिम्मेदार नहीं हैं।”

इसके तुरंत बाद सीरियाई अधिकारियों को संवेदनशील दस्तावेज़ जलाने, सिस्टम से हार्ड ड्राइव निकालने और ठिकानों को खाली करने का आदेश दिया गया।

ईरान की वापसी के बाद ढह गई सीरियाई सेना

ईरान का हटना असद शासन के लिए अंतिम झटका साबित हुआ।

  • नेतृत्व विहीन सेना
  • विद्रोहियों की तेज़ बढ़त
  • स्थानीय जनता का असद से मोहभंग
  • सैनिकों का लगातार पलायन

स्थिति इतनी बिगड़ गई कि मनोबल बढ़ाने के लिए असद ने सैनिकों को एक महीने की एडवांस सैलरी तक दे दी, लेकिन कई सैनिक उसी पैसे के साथ युद्धक्षेत्र छोड़कर भाग निकले।

आखिरकार असद भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाए और रूस में शरण लेने के लिए सीरिया छोड़ दिया। कुछ ही घंटों में दमिश्क विद्रोहियों के कब्ज़े में था।

अफरा-तफरी की रात: ईरानी अधिकारी लेबनान भागे

ईरान की वापसी इतनी जल्दबाज़ी में हुई कि न कॉन्सुलेट बचा, न दूतावास।
5 दिसंबर की शाम तक दमिश्क स्थित ईरानी कॉन्सुलेट खाली हो चुका था।
कई ईरानी अधिकारियों और सीरियाई कर्मचारियों को फ्लाइट तक नहीं मिली—वे बॉर्डर पार कर सड़क मार्ग से लेबनान के लिए निकल गए।

सीरिया–लेबनान सीमा पर जेडेडेट याबस क्रॉसिंग पर इतनी भारी भीड़ जमा हो गई कि
सीमा पार करने में 8 घंटे तक इंतजार करना पड़ा।

अंत ने बदल डाला पूरा क्षेत्र

असद शासन के पतन के साथ ही मध्य-पूर्व की राजनीति में नई शक्ति-संतुलन की शुरुआत हुई है। दमिश्क में नई सरकार की स्थापना, ईरान की क्षेत्रीय रणनीति की कमजोरी और इस्लामिक विद्रोही गुटों का उभार—इन सबने पूरा समीकरण बदल दिया है।

एक वर्ष बाद भी सीरिया इस परिवर्तन की गूंज से उबर नहीं पाया है। पर इतना तय है कि दमिश्क का पतन आधुनिक इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था—एक ऐसा मोड़, जिसे ईरान की अकस्मात वापसी ने और भी नाटकीय बना दिया।

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