Wednesday, December 17

राजद में टूट का साया? 25 सीटों पर सिमटी पार्टी, तेजस्वी को विधायकों के पाला बदलने का बढ़ा डर

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव–2025 में राजद को मात्र 25 सीटें मिलने के बाद पार्टी एक बार फिर टूट की आशंका से घिर गई है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को डर सता रहा है कि पिछले वर्षों की तरह इस बार भी उनके विधायक सत्ता पक्ष के पाले में जा सकते हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि एनडीए के रणनीतिकार राजद और महागठबंधन के विधायकों पर लगातार नजर बनाए हुए हैं और उन्हें अपनी ओर खींचने की कोशिशें तेज हैं।

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शक्ति परीक्षण के दौरान भी हुआ था झटका

नीतीश कुमार के आरजेडी से नाता तोड़ने के बाद जब पिछली बार शक्ति परीक्षण हुआ था, तो चेतन आनंद, प्रह्लाद यादव, सुनीता देवी, विभा देवी और प्रकाश वीर जैसे कई विधायक अचानक एनडीए के पक्ष में दिखाई दिए थे। यद्यपि यह संख्या दल-बदल कानून के तहत निर्धारित अनुपात से कम थी, फिर भी इस घटनाक्रम ने तेजस्वी यादव को गहरी चिंता में डाल दिया था।

25 सीटों पर सिमटने से बढ़ी मुश्किलें

इस बार चुनावी परिणाम राजद के लिए बेहद निराशाजनक रहे। महज 25 सीटों की उपलब्धि ने पार्टी की मजबूती पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कमजोर संख्याबल के कारण पार्टी के कई विधायक अवसरवादी राजनीति का रुख कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, एनडीए खेमे में राजद को ‘डूबती नाव’ बताया जा रहा है और सिर्फ उपयुक्त समय का इंतजार है। कांग्रेस और राजद—दोनों को अपने विधायकों के टूटने का भय लगातार सता रहा है।

नीतीश-सम्राट चौधरी का ‘पुराना मॉडल’ फिर एक्टिव?

राजद में टूट की चर्चाओं के बीच वर्ष 2013 का वह प्रसंग भी फिर चर्चा में है, जब सम्राट चौधरी ने नाटकीय ढंग से 13 विधायकों को एक झटके में अपने खेमे में ले लिया था। उस समय नरेंद्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी से नाराज नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था और जदयू सरकार अल्पमत में आ गई थी।

ऐसे मुश्किल दौर में कांग्रेस के चार, चार निर्दलीय, सीपीआई के एकमात्र विधायक तथा बाद में सम्राट चौधरी द्वारा जुटाए गए 13 आरजेडी विधायकों के समर्थन से जदयू ने बहुमत हासिल कर लिया था। यह राजनीतिक घटनाक्रम अब मौजूदा स्थिति में एक संदर्भ के रूप में देखा जा रहा है, जिससे तेजस्वी यादव की चिंता और अधिक बढ़ गई है।

तेजस्वी की चुनौती—विधायकों को एकजुट रखना

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हार के बाद पार्टी में मनोबल गिरा है और कई नेता विकल्प तलाशने की स्थिति में हैं। ऐसे में तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती विधायकों को एकजुट रखना और राजद में चल रही असंतोष की लहर को काबू में करना है।

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