Wednesday, December 17

115 साल बाद लौटे अपनेपन की ओर: फिजी से बस्ती पहुंचे रविंद्र दत्त–छठी पीढ़ी से मिल छलक उठीं आंखें

बस्ती, यूपी: खून के रिश्तों की डोर चाहे जितनी भी लंबी क्यों न हो, समय की धूल उसे मिटा नहीं सकती। इसका जीवंत उदाहरण देखने को मिला बस्ती जिले के बनकटी ब्लॉक के कबरा गांव में, जहां फिजी में बसे भारतीय मूल के रविंद्र दत्त 115 साल बाद अपने पैतृक गांव पहुंचे। अपने पूर्वजों की धरती पर कदम रखते ही उनकी आंखें नम हो गईं, और अपनों से मिलते ही भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा।

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1910 में फिजी गए थे परदादा गरीब राम

रविंद्र दत्त के परदादा गरीब राम उन हजारों भारतीयों में शामिल थे जिन्हें अंग्रेज शासनकाल में 1910 में गिरमिटिया मजदूर बनाकर फिजी भेजा गया था। वहां कठिन मजदूरी करवाने के बाद उन्हें भारत लौटने नहीं दिया गया। समय के साथ परिवार वहीं बस गया, लेकिन जड़ों की खोज ने परपोते को फिर अपनी मिट्टी तक खींच लाया।

इमिग्रेशन पास से मिली नई उम्मीद

रविंद्र दत्त ने बताया कि लंबे समय तक तलाश के बाद उन्हें परदादा का इमिग्रेशन पास मिला, जिसमें दर्ज जानकारियों ने उन्हें अपने पैतृक गांव तक पहुंचने का रास्ता दिखाया। वर्षों की खोज, परिवार का सपना और जड़ों का खिंचाव—सब मिलकर उन्हें भारत की ओर ले आए।

2019 में भारत आकर की थी खोज की शुरुआत

2019 में पहली बार भारत आकर उन्होंने अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की। अयोध्या जाकर भगवान राम से मन्नत मांगी कि उन्हें उनका बिछड़ा परिवार मिल जाए। इंटरनेट, रिकॉर्ड और कई स्रोतों की मदद से आखिरकार वह शुक्रवार को कबरा गांव पहुंच गए।

115 साल बाद मिला अपना परिवार

गांव में गरीब राम की वंशावली से जुड़े सदस्यों—भोला चौधरी, गोरखनाथ, विश्वनाथ, दिनेश, उमेश, रामउग्रह और अन्य रिश्तेदारों से मिलकर रविंद्र दत्त भावुक हो उठे। उनकी पत्नी केशनी हरे भी इस मिलन की सुखद घड़ी में भावुक हो गईं। गांववालों ने भी उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।

छठी पीढ़ी को दिया फिजी आने का न्योता

अपने पूर्वजों की छठी पीढ़ी से मिलकर अभिभूत रविंद्र दत्त ने सभी को फिजी आने का आमंत्रण दिया। उन्होंने कहा कि अब भारत के साथ उनका रिश्ता और गहरा हो गया है और वे हर सुख-दुख में परिवार के साथ खड़े रहेंगे।

गांव में बिताए यादगार पल

गांव के प्रधान प्रतिनिधि रवि प्रकाश चौधरी ने बताया कि रविंद्र दत्त ने अपने भाई-बंधुओं के साथ तस्वीरें खिंचवाईं, प्राथमिक स्कूल के बच्चों के साथ समय बिताया और गांव की यादों को कैमरे में कैद कर लिया। कुछ दिन की भावनात्मक यात्रा के बाद वे फिजी लौट गए, लेकिन अपनेपन की इस मुलाकात ने कबरा गांव और दत्त परिवार के बीच फिर से एक अटूट बंधन जोड़ दिया।

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