Wednesday, December 17

लखनऊ का चारबाग रेलवे स्टेशन: नवाबी बागों से अंग्रेजों के भव्य स्टेशन तक का सफर

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और नवाबी संस्कृति एक-दूसरे के पर्याय हैं। नवाबी रंग-रूप, अदब-ओ-तहजीब और खूबसूरत बागों की विरासत ने इस शहर को ‘नवाबों की नगरी’ का खिताब दिलाया है। ऐसे ही गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है चारबाग — जो सिर्फ एक रेलवे स्टेशन नहीं, बल्कि लखनऊ के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वैभव का जीवंत उदाहरण है।

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चारबाग का नाम कैसे पड़ा

पुराने समय में इस इलाके को ‘चहार बाग’ कहा जाता था। अवध के चौथे नवाब आसफुद्दौला का यह पसंदीदा बाग था। इतिहासकार रवि भट्ट के अनुसार, 1775 में नवाब आसफुद्दौला ने राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानांतरित की और चारबाग बनवाया। इस्लाम में चारबाग की कल्पना जन्नत के बाग से की गई थी, जो चार बराबर हिस्सों में बंटा होता है। लखनऊ का चारबाग भी छोटी-छोटी नहरों और रास्तों से चार हिस्सों में विभाजित था, और इसके मध्य में एक ईरानी शैली का भवन स्थित था।

1857 का युद्ध और अंग्रेजों का हस्तक्षेप

चारबाग क्षेत्र में 1857 का युद्ध भी लड़ा गया। नवाबी दौर के अंत के बाद यह बाग धीरे-धीरे उजड़ने लगा। अंग्रेजों ने मोहम्मदबाग और आलमबाग के बीच का इलाका चुना और नवाबों को मुआवजा देकर रेलवे लाइन बिछाई। 21 मार्च 1914 को बिशप जॉर्ज हरबर्ट ने चारबाग रेलवे स्टेशन की नींव रखी।

इतिहास और राजनीति का केंद्र

चारबाग रेलवे स्टेशन न केवल वास्तुकला में खूबसूरत है, बल्कि यह ऐतिहासिक घटनाओं का भी साक्षी रहा है। यही वह स्थल है जहाँ महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहली मुलाकात हुई थी। 26 दिसंबर 1916 को कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने लखनऊ आए गांधी जी ने स्टेशन पर नेहरू जी से लगभग 20 मिनट तक बातचीत की। आज उस स्थल पर स्टेशन की पार्किंग है, और स्मृति-चिह्न भी मौजूद है।

खूबसूरत स्थापत्य और आधुनिक महत्व

उपरी दृष्टि से चारबाग स्टेशन की बनावट शतरंज की बिसात जैसी प्रतीत होती है, जो इसकी अनोखी स्थापत्य कला का परिचायक है। यह स्टेशन आज भी भारत के सबसे व्यस्त और खूबसूरत रेलवे स्टेशनों में शुमार है।

चारबाग रेलवे स्टेशन का इतिहास नवाबी बागों, 1857 के संग्राम और अंग्रेजों के भव्य निर्माण के साथ जुड़ा हुआ है, जो लखनऊ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक परिवहन की जरूरतों का संगम प्रस्तुत करता है।

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