Wednesday, December 17

दार्जिलिंग में जनशक्ति का कमाल सरकारी अल्टिमेटम के बीच स्थानीय लोगों ने मनी पूल से बना दिया 140 फीट लंबा ‘गोरखालैंड पुल’

गुवाहाटी/दार्जिलिंग: पश्चिम बंगाल सरकार के दिशा-निर्देशों और अनुमति के अभाव के बावजूद दार्जिलिंग में स्थानीय निवासियों ने जनशक्ति और सामुदायिक सहयोग की मिसाल पेश करते हुए 140 फीट लंबा पुल तैयार कर दिया। तुंगसुंग खोला पर बने इस पुल को लोगों ने अपने खर्च पर, बिना किसी सरकारी सहायता के पूरा किया है। रविवार को इसका उद्घाटन हुआ और पुल का नाम ‘गोरखालैंड पुल’ रखा गया, जो पहाड़ों में लंबे समय से चल रही राज्य की मांग का प्रतीक माना जा रहा है।

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मनी पूल और श्रमदान से बना पुल

पुल का निर्माण पूरी तरह स्थानीय लोगों के कॉन्ट्रिब्यूशन और श्रमिक दान पर आधारित रहा।
सबने अपनी क्षमता के अनुसार धन दिया और श्रमदान किया।
भारतीय गोरखा जनशक्ति मोर्चा (IGJF) के मुख्य संयोजक अजय एडवर्ड्स ने सीमेंट और सरिया जैसी प्रमुख सामग्रियों की व्यवस्था की।

स्थानीय निवासियों के मुताबिक यह पुल उनकी “साझी इच्छाशक्ति” का प्रतीक है—एक ऐसा प्रयास जो पूरी तरह जनता के बल पर खड़ा हुआ।

राजनीतिक संवेदनशीलता के बीच प्रतीकात्मक नाम

पुल का नाम ‘गोरखालैंड’ रखना राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले पहाड़ियों में राजनीतिक तापमान बढ़ा सकता है।

दार्जिलिंग में गोरखालैंड की मांग भले ही पिछले वर्षों में धीमी पड़ी हो, लेकिन इसकी भावना अब भी लोगों की राजनीति और पहचान के केंद्र में है।
इसी के चलते पुल पर 60 फीट ऊंची नाम पट्टिका भी लगाई गई है, जिसने इस पहल को और चर्चित बना दिया है।

एक साल का संघर्ष, जनवरी 2025 में रखा था नींव का पत्थर

इस परियोजना की शुरुआत जनवरी 2025 में हुई थी।
करीब एक वर्ष तक चली मेहनत, विरोध, रुकावटों और चुनौतियों के बाद पुल तैयार हो सका।

अजय एडवर्ड्स के अनुसार निर्माण के दौरान—

  • कई बार तोड़फोड़ की कोशिशें हुईं
  • पुलिस द्वारा धमकियां दी गईं
  • निर्माण सामग्री रोकने के प्रयास हुए
  • समन्वयक सूरज तमांग के साथ उत्पीड़न की घटनाएं भी सामने आईं

फिर भी ग्रामीणों ने हार नहीं मानी और श्रमदान के जरिए पुल को पूरा कर दिया।

सरकारी आदेश को दरकिनार कर तैयार हुआ पुल

16 फरवरी 2017 की बंगाल सरकार की अधिसूचना के अनुसार, किसी भी गैर-सरकारी संस्था को पुल या पुलिया बनाने से पहले सिंचाई और जलमार्ग विभाग की अनुमति लेनी होती है।
इसके लिए ऑनलाइन आवेदन प्रणाली भी अनिवार्य है।

हालांकि स्थानीय लोगों ने कई बार GTA और राज्य सरकार से अनुमति मांगी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
आखिरकार 29 समाजिक संगठनों की अपील पर एडवर्ड्स ने निजी स्तर पर हस्तक्षेप किया और निर्माण शुरू हुआ।

एक राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार,
“सरकारी मंजूरी न मिलने के बावजूद पुल बन जाना बताता है कि पहाड़ों में गोरखालैंड की भावना को लेकर कोई खुला विरोध नहीं कर सकता।”

किसे जोडता है ये पुल?

दार्जिलिंग से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित यह पुल
तुंगसुंग (बंद चाय बागान क्षेत्र) को
पोखरियाबोंग घाटी से जोड़ता है।

स्थानीय लोगों के अनुसार यह पुल—

  • बच्चों की आवाजाही
  • खेती-किसानी
  • दैनिक आवागमन
  • रोजगार तक पहुंच
    को आसान बनाएगा।

यह पुल उनके लिए जीवनरेखा की तरह है।

दार्जिलिंग का ‘गोरखालैंड पुल’ सिर्फ एक निर्माण परियोजना नहीं, बल्कि सामुदायिक शक्ति, संघर्षशीलता और राजनीतिक संदेश का मजबूत प्रतीक बनकर उभरा है।
सरकारी सहायता के अभाव में भी लोगों ने जो किया, वह पहाड़ों की एक नई कहानी लिखता है—एकता, जज्बे और अधिकारों की आवाज की कहानी।

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