Tuesday, December 16

सरकार के अल्टिमेटम के बीच दार्जिलिंग में जनशक्ति का कमाल स्थानीय लोगों ने मनी पूल से बनाया 140 फीट लंबा ‘गोरखालैंड पुल’

गुवाहाटी/दार्जिलिंग: पश्चिम बंगाल सरकार की मंजूरी के बिना दार्जिलिंग के निवासियों ने अपने दम पर 140 फीट लंबा पुल बनाकर मिसाल पेश की है। स्थानीय लोगों ने मनी पूल बनाकर, अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार योगदान दिया और तुंगसुंग खोला पर बने इस पुल को तैयार किया। रविवार को उद्घाटन हुए इस पुल का नाम ‘गोरखालैंड पुल’ रखा गया है, जिसने पहाड़ों में गोरखालैंड की भावनाओं को फिर से हवा दी है।

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जनवरी 2025 से शुरू हुआ था निर्माण

यह परियोजना जनवरी 2025 में शुरू हुई थी। लगभग एक साल की मेहनत के बाद पुल तैयार हो सका।
चौंकाने वाली बात यह है कि पुल का निर्माण किसी भी सरकारी मदद के बिना, पूरी तरह सामुदायिक सहयोग और श्रमदान से हुआ।
भारतीय गोरखा जनशक्ति मोर्चा (IGJF) के मुख्य संयोजक अजय एडवर्ड्स ने सीमेंट और सरिया जैसी प्रमुख सामग्रियों की आपूर्ति की।

गोरखालैंड आंदोलन की याद दिलाता नाम

पुल का नाम ‘गोरखालैंड’ रखना अपने आप में प्रतीकात्मक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम बंगाल विधानसभा चुनावों से ठीक पहले राजनीतिक रूप से बड़ा असर पैदा कर सकता है।
दार्जिलिंग में गोरखालैंड की मांग अभी भी राजनीतिक पहचान का केंद्र है। 2017 के आंदोलन के बाद भले ही यह मुद्दा थोड़ा शांत पड़ा हो, लेकिन पहाड़ में यह भावना आज भी गहरी है।

स्थानीय लोगों ने पुल पर 60 फीट ऊंची नाम पट्टिका भी लगाई है, जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल बढ़ा दी है।

एडवर्ड्स बोले—“जनशक्ति है गोरखाओं की ताकत”

उद्घाटन के दौरान अजय एडवर्ड्स ने कहा,
“यह पुल गोरखा पहचान और जनशक्ति का प्रमाण है। अगर गोरखा समुदाय एकजुट हो जाए, तो कुछ भी असंभव नहीं।”

उन्होंने आरोप लगाया कि निर्माण के दौरान कई बार तोड़फोड़ की कोशिशें हुईं, पुलिस की धमकियां दी गईं और निर्माण सामग्री रोकने की कोशिश की गई।

इसके बावजूद गांवों के लोगों ने हार नहीं मानी और श्रमदान से पुल को पूरा कर दिया।

कई बाधाओं के बाद भी पूरा हुआ निर्माण

  • पुल निर्माण के दौरान अनुमति देने से सरकार ने इंकार कर दिया।
  • 2017 की अधिसूचना के अनुसार, किसी भी गैर-सरकारी संस्था को पुल बनाने से पहले ऑनलाइन अनुमति लेनी होती है।
  • स्थानीय लोगों ने सरकार, GTA और सिंचाई विभाग से कई बार अपील की लेकिन कोई मदद नहीं मिली।

बाद में 29 स्थानीय समाजों ने एडवर्ड्स से हस्तक्षेप की गुहार लगाई और फिर निर्माण शुरू हुआ।

किसे जोड़ता है पुल?

यह पुल दार्जिलिंग से लगभग 18 किमी दूर
तुंगसुंग (बंद चाय बागान क्षेत्र) को
पोखरियाबोंग घाटी से जोड़ता है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पुल उनके लिए जीवनरेखा जैसा है, जो रोजमर्रा की यात्रा, खेती और स्थानीय अर्थव्यवस्था को आसान बनाएगा।

राजनीतिक संवेदनशीलता के बावजूद उद्घाटन

एक राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार,
“सरकारी मंजूरी के बिना पुल का बन जाना और ‘गोरखालैंड पुल’ नाम से उसका उद्घाटन होना दर्शाता है कि पहाड़ों में अब भी राज्य के दर्जे की भावना कितनी प्रबल है। सरकार इसका सीधा विरोध नहीं कर सकती।”

हालांकि अधिसूचना का उल्लंघन होने के बावजूद अब तक कोई सरकारी कार्रवाई सामने नहीं आई है।

दार्जिलिंग का यह पुल केवल एक निर्माण परियोजना नहीं, बल्कि गोरखाओं की सामूहिक इच्छाशक्ति, राजनीतिक चेतना और संघर्ष की एक नई कहानी बताता है।

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